SAI SATCHARITRA CHAPTER 1 in Hindi | साई सत्चरित्र अध्याय 1

SAI SATCHARITRA CHAPTER 1 in Hindiवंदना, गेहूँ पीसने वाला एक अध्भुत संत – गेहूँ पीसने की कथा तथा उसका तात्पर्य |

साई सत्चरित्र अध्याय 1

SAI SATCHARITRA CHAPTER 1 in Hindi | साई सत्चरित्र अध्याय 1

1 . प्रथम श्री गणेश को साष्टांग नमन करते है , जो कार्य को निर्विघ्न समाप्त कर उसको यशस्वी बनाते है और कहते है कि श्री साई ही गणपति है |

2.फिर भगवती सरस्वती को , जिन्होंने काव्य रचने की प्रेरणा दी और कहते है कि श्री साई भगवती से भिन्न नहीं है , जो कि स्वय ही अपना जीवन संगीत बयान कर रहे है |

3. फिर ब्रह्मा , विष्णु और महेश , जो क्रमशः उत्पत्ति, स्थिति और संहारकर्ता है और कहते है कि श्री साई और वे अभिन्न है | वे स्वय ही गुरु बनकर भवसागर से पार उतार देंगे |


4 . फिर अपने कुलदेवता श्री नारायण आदिनाथ की वंदना करते है , जो कि कोंकण में प्रगट हुए | कोंकण वह भूमि है , जिसे श्री परशुरामजी ने समुद्र से निकालकर स्थापित किया था | तत्पश्चात वे अपने कुल के आदिपुरुषों को नमन करते है |

5 . फिर श्री भारद्धाज मुनि को , जिनके गोत्र में उनका जनम हुआ | पश्चात् उन ऋषिओ को जैसे – याज्ञवल्क्य, भृगु , पराशर , नारद , वेदव्यास , सनक – सनन्दन , सनत्कुमार , शुक , शौनक , विश्वामित्र , वशिष्ट , वामदेव , जैमिनी , वैशपायन , नवयोगिन्द्र , इत्यादि तथा आधुनिक संत जैसे – निवृति , ज्ञानदेव ,सोपान , मुक्ताबाई , जनार्दन , एकनाथ, नामदेव , तुकाराम, कान्हा , नरहरि आदि को नमन करते है |


6 . फिर अपने पितामह सदाशिव , पिता रघुनाथ और माता को , जो उनके बचपन में ही गत हो गई थी | फिर अपनी चाची को , जिन्होंने उनका भरण – पोषण किया और अपने प्रिय भ्राता को नमन करते है |

7. फिर पाठको को नमन करते है , जिनसे उनकी प्रार्थना है कि वे एकाग्रचित होकर कथामृत का पान करे |


8 . अंत में श्री सच्चिदानंद सद्गुरु श्री साईनाथ महाराज को , जो कि श्री दत्तात्रेय के अवतार और उनके आश्रयदाता है और जो ” ब्रह्मा सत्यं जगनिम मथ्या ” का बोध कराकर समस्त प्राणियों में एक ही ब्रहा की अनुभूति कराते है |

सर्व श्री पराशर , व्यास और शांडिल्य आदि के समान भक्ति के प्रकारो का संक्षेप में वर्णन कर अब ग्रंथकार महोदय निम्नलिखित कथा प्रारम्भ करते है |

गेहूँ पीसने की कथा

सन 1910 में मैं एक दिन प्रातः काल श्री साई बाबा का दर्शनार्थ मस्जिद में गया | वहाँ का विचित्र दृश्य देख मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि साई बाबा मुँह हाथ धोने के पश्चात् चक्की पीसने की तैयारी करने लगे | उन्होंने फर्श पर एक टाट का टुकड़ा बिछा , उस पर हाथ से पीसने वाली चक्की राखी | उन्होंने कुछ गेहूँ डालकर पीसना आरम्भ कर दिया |
मेँ सोचने लगा कि बाबा के चक्की पीसने से क्या लाभ है ? उनके पास तो कोई है भी नहीं , और वे अपना निर्वाह भी भिक्षावृति द्वारा ही करते है |

इस घटना के समय वहाँ उपस्थित अन्य व्यक्तियों की भी ऐसी ही धारणा थी | परन्तु उनसे पूछने का साहस किसे था ? बाबा के चक्की पीसने का समाचार शीघ्र ही सारे गाँव में फैल गया और उनकी यह विचित्र लीला देखने हेतु तत्काल ही नर -नारियो की भीड़ मस्जिद की और दौड़ पड़ी |
उनमे से चार निडर स्त्रियाँ भीड़ को चीरती हुई ऊपर आई और बाबा को बलपूर्वक वहाँ से हटाकर उनके हाथ से चक्की का खूँटा छीनकर तथा उनकी लीलाओ का गायन करते हुए उन्होंने गेहूँ पीसना प्रारम्भ कर दिया |

पहले तो बाबा क्रोधित हुए , परन्तु फिर उनका भक्ति भाव देखकर वे शांत होकर मुस्कुराने लगे | पिसते पिसते उन स्त्रियों के मन में एक ऐसा विचार आया कि बाबा के ना तो घरद्धार है और ना इनके कोई बाल बच्चे हैं तथा ना कोई देखरेख करने वाला ही है वे स्वय भिक्षावृत्ति द्वारा ही अपना निर्वाह करते हैं अतः उन्हें भोजन आदि के लिए आटे की आवश्यकता ही क्या है ?

बाबा तो परम दयालु है | हो सकता है कि यह आटा वे हम सब लोगों में ही वितरण कर दें | इन्हीं विचारों के मगन रहकर गीत गाते गाते ही उन्होंने सारा आटा पीस डाला | तब उन्होंने चक्की को हटाकर आटे को चार समान भागों में विभक्त कर लिया और अपना-अपना भाग लेकर वहां से जाने को उघत हुई |

अभी तक शांत मुद्रा में निमग्न बाबा तत्क्षण ही क्रोधित हो उठे और उन्हें अपशब्द कहने लगे- “स्त्रियों क्या तुम पागल हो गई हो ? तुम किसके बाप का माल हड़प कर ले जा रही हो ? क्या कोई कर्जदार का माल है, जो इतनी आसानी से उठाकर लिए जा रही हो? अच्छा अब एक कार्य करो कि इस आटे को ले जाकर गांव की सीमा पर बिखेर आओ “|

मैंने शिर्डी वासियों से प्रश्न किया कि जो कुछ बाबा ने अभी किया है उसका यथार्थ में क्या तात्पर्य है ? उन्होंने मुझे बताया कि गांव में विषूचिका (हैजा) का जोरों से प्रकोप है और उसके निवारणार्थ ही बाबा का यह उपचार है | अभी जो कुछ आपने पीसते देखा था ,वह गेहूँ नहीं ,वरन विषूचिका (हैजा) थी, जो पीस कर नष्ट भ्रष्ट कर दी गई है | इस घटना के पश्चात सचमुच विषूचिका (हैजा) की संक्रामकता शांत हो गई और ग्रामवासी सुखी हो गए |

यह जानकर मेरी प्रसन्नता का पारावार ना रहा | मेरा कौतूहल जागृत हो गया | मैं स्वयं से प्रश्न करने लगा कि आटे और विषूचिका (हैजा) रोग का भौतिक तथा पारस्परिक क्या संबंध है ? इसका सूत्र कैसे ज्ञात हो ? घटना बुद्धिगम्य सी प्रतीत नहीं होती |

अपने हृदय की संतुष्टि के हेतु इस मधुर लीला का मुझे 4 शब्दों में महत्व अवश्य प्रकट करना चाहिए | लीला पर चिंतन करते हुए मेरा हृदय प्रफुल्लित हो उठा और इस प्रकार बाबा का जीवन चरित्र लिखने के लिए मुझे प्रेरणा मिली | यह तो सब लोगों को विदित ही है कि यह कार्य बाबा की कृपा और शुभ आशीर्वाद से सफलतापूर्वक संपन्न हो गया |

आटा पीसने का तात्पर्य

शिर्डी वासियों ने इस आटा पीसने की घटना का जो अर्थ लगाया, वह तो प्राय ठीक ही है परंतु उसके अतिरिक्त मेरे विचार से कोई अन्य अर्थ भी है | बाबा शिर्डी में 60 वर्षों तक रहे और इस दीर्घ काल में उन्होंने आटा पीसने का कार्य प्राय प्रतिदिन ही किया |

पीसने का अभिप्राय गेहूं से नहीं ,वरन अपने भक्तों के पापों ,दुर्भाग्यो , मानसिक तथा शारीरिक तापो से था | उनकी चक्की के दो पाटों में ऊपर का पाट भक्ति तथा नीचे का कर्म था | चक्की का मुठिया जिससे कि वे पीसते थे वह था ज्ञान |

बाबा का दृढ़ विश्वास था कि जब तक मनुष्य के हृदय से प्रवृत्तियां, आसक्ति,घृणा तथा अहंकार नष्ट नहीं हो जाते ,जिनका नष्ट होना अत्यंत दुष्कर है; तब तक ज्ञान तथा आत्मानुभूति संभव नहीं है |

यह घटना कबीरदासजी की इसके तदनुरूप घटना की स्मृति दिलाती है | कबीर दास जी एक स्त्री को अनाज पीसते देख कर अपने गुरु निपट निरंजन से कहने लगे कि मैं इसलिए रुदन कर रहा हूं कि जिस प्रकार अनाज चक्की में पैसा जाता है ,उसी प्रकार मैं भी भवसागर रुपी चक्की में पीस जाने की यातना का अनुभव कर रहा हूँ |

उनके गुरु ने उत्तर दिया कि घबराओ नहीं ,चक्की के केंद्र में जो ज्ञान रूपी दंड है ,उसे को दृढ़ता से पकड़ लो ,जिस प्रकार तुम मुझे करते देख रहे हो | उससे दूर मत जाओ ,बस केंद्र की ओर अग्रसर होते जाओ और तब यह निश्चित है कि तुम इस भवसागर रुपी चक्की से अवश्य ही बच जाओगे |

|| श्री सद्गुरु साईनाथापर्णमस्तु | शुभं भवतु ||

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