श्री साई स्तवन मंजरी | Shri Sai Stavan Manjari In Hindi
श्री साई – स्तवन मंजरी | एक विनम्र श्रद्धांजलि साई बाबा को | श्री दसगणु महाराज कृत
मैं चरण स्पर्श करता हूँ श्री गणेश को,
हे, मयूरेश्वर, एक आप ही है जिसपर हम निर्भर हैं,
हे, गौरी के पुत्र, जो सब जानते (सर्वज्ञ) है,
हे आप समझ से परे हैं,
आप जिनके पास बहुत बड़ा (विशाल) पेट है,
रक्षा करिए, हे, श्री गणपती।
आप सभी गणों और सभी देवी देवताओं में प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण हैं;
इसलिए, आपको “गणेश” कहते हैं,
आपको शस्त्रों द्वारा स्वीकृत किया जाता है,
आपका पवन चेहरा है,
हे, बालचंद्र!
हे, माँ शारदा वाणी की देवी!
आप शब्दों के क्षेत्र की स्वामिनी हैं;
आपके अस्तित्व की वजह से;
सारे सांसारिक लेन देन चलते हैं।
आप वो देवी हैं जो सारे लेखकों द्वारा पूजी जाती हैं;
आप हमेशा से ही इस राष्ट्र का गौरव हैं,
आपकी असीम शक्ति हर जगह पर विद्यमान है,
मैं आपको नमन करता हूँ, जगदम्बे।
आप परमात्मा हैं और सभी संतों के पर्मप्रिय हैं,
आप पंढ़रपुर के पंढरीनाथ के मानव अवतार हैं,
आप असीम दया और करुणा के सागर हैं;
हे, नरहरी पांडुरंगा!
आप वो हैं जो सम्पूर्ण विश्व को नियंत्रित करते हैं और,
सब जगह पर हैं,
आज भी विज्ञानऔर सभी धार्मिक पुस्तकें आपके सार को जानने में लगी हुई है।
वो लोग जिन्हे सिर्फ पुस्तकीय ज्ञान है,
आप उनके सामने स्वयं को प्रकट नहीं करते, हे, चक्रपाणि;
बल्कि वो सभी मूर्ख लोग,
केवल शब्दों के माया जाल में पड़े रहते हैं।
सिर्फ साधु संत ही हैं जो आपको समझते हैं।
बकी सिर्फ असमंजस (दुविधा) में रहते हैं।
मैं आपको पूरी श्रद्धा और अदर के साथ,
दंडवत प्रणाम करता हूँ।
हे, आप पाँच सिर वाले शंकर,
हे, आपको खोपड़ियों के माल को पहने वाले,
हे, आप नीले कंठ (गले) वाले दिगम्बर,
हे, आप भ्रम रूप पशुपति
जो भी हर समय आपका नाम स्मरण (जाप) करता है,
उसकी सांसारिक परेशानियाँ सहेगर ही समाप्त हो जाती है,
हे, धूरजटि ऐसी शक्ति है,
आपके नाम में।
पूरी श्रद्धा के साथ आपके चरणों को नमन करके,
मैं यह गीत (स्तुति) आपकी प्रशंसा में लिख रहा हूँ;
आप हमेशा इस विशेष कार्य को पूरा करने में मेरी मदद करें,
हे, आप, नीला कंठ – नीले कंठ (गले) वाले हैं।
अब, मैं नमन करता हूँ, स्वामी दत्तात्रेय को जो की आरती के पुत्र हैं,
भगवान विष्णु को जो इन्द्र के परिवार के देवता हैं,
संत तुकाराम के साथ साथ बाकी सभी संतों को,
और सभी भक्तों को भी।
जय हो, आपकी जय हो, साईनाथ,
जो पापियों का उद्धार करने वाले और परम दयालु हैं!
मैं अपना सिर आपके चरणों में रखता हूँ;
अब आप ही मुझे अपनी सुरक्षा दें
आप ही पूरा संसार हैं आनंद निवास है,
आप, स्वयं भगवान विष्णु हैं जो कि सभी पुरुषों में मिसाल है,
आप, जिनकी पत्नी मां उमा है!
आप ही कामदेव के शत्रु हैं।
आप ही मानव रूप में भगवान हैं।
आप ही ज्ञान के आकाश में सूर्य हैं।
आप ही दया के सागर हैं।
आप ही सांसारिक परेशानियों, दुखों, रोगों की औषधि हैं।
आप गरीबों, दुखियों और दलितों के लिए चिंतामणि हैं।
आप अपने भक्तों को शुद्ध करने वाली गंगा नदी हैं।
आप दुनियादारी में डूबने वालों को पार लगाने का बेड़ा है।
आप डरपोकों को शरण देने वाले हैं।
आप ही इस महत्वपूर्ण सृष्टि की रचना के कारण हैं,
वो जो कि शुद्ध चैतन्य हैं।
हे आप वो दया और करुणा का खजाना हैं;
यह विश्व आपकी ही एक लीला है।
आपका जन्म नहीं हुआ (अजन्मे) हैं।
मृत्यु भी आपको प्रभावित नहीं कर सकती।
यह ही अंतिम निष्कर्ष है
जिस पर हम पहुंचते हैं, बहुत सोच-विचार के बाद।
जन्म और मृत्यु
यह विचार सिर्फ अज्ञान से पैदा हुआ है।
आप इन दोनों से
बेशक ही मुक्त हैं, हे भगवान!
अगर पानी झरने का रूप लेता है,
तो क्या इसका मतलब कि उसका निकास (स्तोत्र) वहां से है?
वह पहले से ही पूरी तरह से वहां था
केवल पृथ्वी के अंदर से बाहर आया है।
पानी जब एक गड्ढे में से उछलता है
इसलिए उसका नाम होता है
और “झरना” उसका सही नाम बन जाता है
पानी के बिना, वह सिर्फ एक गड्ढा ही है।
पहले उछालना और फिर सुख के गायब हो जाना
ऐसा पानी का स्वभाव नहीं है
इसलिए झड़ने का जो पानी है
वह जिस भी गड्ढे को भरता है उसे महत्व नहीं देता है।
वो तो सिर्फ यह गड्ढा है जो खुद पर गर्व करता है
किंतु वह तो यह पानी है जो उसे भरता है
इसलिए जब पानी सूख जाता है
तो वो गड्ढा खोखला हो जाता है।
यह मानव शरीर एक खोकला नदी तल की तरह है
यह आत्मा को झड़ने के शुद्ध पानी की तरह है
यद्यपि ऐसे अनगिनत गड्ढे हैं
फिर भी सब में एक ही तो है।
अब तक आप बिना आदि के हैं
आप दयालु हैं मैं आप से कहता हूं कि
इस अज्ञानता में पहाड़ को नष्ट करने के लिए
आप इंद्रदेव के वज्र बन जाएं।
अभी तक ऐसे खोखले लोगों का
इस धरती स्थल पर बड़ी संख्या में अस्तित्व रहा है
अभी भी बड़ी संख्या में मौजूद हैं
और आगे भी भविष्य में बड़ी संख्या में आएंगे।
ऐसे हर एक इंसान को
एक अलग नाम और एक अलग रूप दिया गया है
इस तरह से इस संसार में
उनकी पहचान की जाती है।
इसलिए इस आत्मा में अंतर समझना
मेरी और तेरी के रूप में उचित नहीं है
क्योंकि वहां कोई द्वैत नहीं
इसलिए वह निश्चित रूप से आत्मा ही है।
और इसलिए यह आत्मा
पूरे ही संसार के अंतर्गत है
तब फिर कैसे यह द्वैत का भाव “तेरा और मेरा”
इस पर विचार किया जा सकता है?
पानी जो बादलों में छिपा हुआ है
वो एक ही है
लेकिन जब वह धरती पर बरसता है
वो अलग अलग रूप ले लेता है।
जब वह जो गोदावरी में गिरता है
तो पवित्र गोदावरी नदी कहलाने लगता है
जब वह कुएं में गिरता है
तब उसकी पवित्रता वैसे नहीं होती।
संत पवित्र गोदावरी नदी है
और हम उसके पवित्र जल हैं
हम लोग कीचड़, कुआं और झील हैं
यही अंतर है आप में और हम लोगों में।
अपने जीवन का निर्वाह करने के लिए
हम सबको हमेशा हाथ जोड़कर
आत्मसमर्पण (आप को समर्पण) कर देना चाहिए
क्योंकि आप धर्मपरायण हैं।
यह तो खुद के नदी तल के कारण है
कि गोदावरी नदी का जल पवित्र है
और अगर केवल सिर्फ पानी माना जाए
तब वह वह हर जगह एक ही है।
गोदावरी नदी का जल
वास्तव में बहुत पवित्र माना गया है
अपनी पवित्रता हर उस
भूमि को देती है जहां से भी बहती है।
पानी जो बादलों में छिपा हुआ है
भूमि के उस भाग को नहीं बदलता जिस पर वो गिरता है
बल्कि भूमि का जो वो भाग है
वह विद्वानों और शास्त्रों द्वारा
गोदावरी नदी (पवित्र) कहा गया है।
जब पानी कहीं और गिरता है
तब वह मिट्टी के स्वरूप को अर्जित (प्राप्त) कर लेता है
यद्यपि शुरू में मीठा होता है
लेकिन दूषित कड़वा और खारा (नमकीन) बन जाता है।
वैसे ही आपके साथ है, हे, गुरुराया
जिनमें छह दोषियों (काम, क्रोध, लोभ, मोह मद और मात्सर्य) की अशुद्धि नहीं है
उस पवित्र (धार्मिक) रूप को
यह नाम, “संत” देना उचित है।
इसलिए सारे संत गोदावरी हैं
कृपा से भरे हुए
सभी प्राणियों में
अपना स्थान सर्वोच्च (सबसे ऊंचा) है।
सृष्टि के आदिकाल से ही
गोदावरी नदी का अस्तित्व रहा है
हमेशा से पानी में भरी रही है
और आज तक उसमें कोई कमी (अभाव) नहीं है।
देखिए रावण का शत्रु भी
गोदावरी नदी के किनारे पर आया
लेकिन उसका पानी बहता ही रहा
और आज जो पानी हैं वह पुराने पानी जैसा नहीं है।
सिर्फ नदी तल ही है जो पहले जैसा है
उसका पानी तो समुद्र (सागर) में प्रवाहित हो गया
लेकिन उस नदी तल की पवित्रता
आज भी अनंत है।
हर साल
पुराना पानी भर जाता है और नया पानी
नदी-तल में प्रवाहित होता है
यह एक नियम है जैसा आप जानते हैं।
एक सदी एक साल की तरह है
उस सदी के चरण
बहते हुए पानी की तरह है
जबकि महान आत्माएं पानी की लहरों की तरह है।
ये संत जो की गोदावरी नदी के समान हैं
शुरुआती सदी में
सनत – सनक – सनन्दन इनकी
बड़ी भारी भीड़ आई।
उसके बाद नारद, तुंबर
ध्रुव, प्रह्लाद, शक्तिशाली राजा बलि
शबरी, अंगद, वायुकुमार
विदुर, गोप – गोपिका
इस प्रकार, बहुत से वर्तमान समय में आए
हर एक पूर्व सदी में
यह भीड़ बार-बार आई
जिसका वर्णन करने में मैं असमर्थ हूं
इस वर्तमान सभी में
इस पवित्र गोदावरी नदी ने
आप के रुप में आकर, हे, साईंनाथ
सचमुच ही इस भूमि को सींच दिया है।
इसलिए मैं पूरी श्रद्धा से आपके चरणों
को नमन करता हूं
हे महाराज मैं आपसे विनती करता हूं
कि कृपया मेरी गलतियों (भूल) पर ध्यान न दें।
मैं तो एक गरीब, नीच और अज्ञानी आदमी हूं।
सबसे बड़ा पापी
अनेक देशों से ग्रस्त (भरा हुआ)
लेकिन कृपया मुझे छोड़िएगा नहीं!
लोहे के जो स्वाभाविक दोष हैं
पारस (एक तरह का शुद्ध पत्थर) उनको नजरअंदाज कर देता है
गांव, लेंड़ी और नाली की छोटी-छोटी धाराओं को
गोदावरी नदी अस्वीकार नहीं करती।
मैं पूरी तरह दोषों से भरा हुआ हूं
आप अपनी दयालु दृष्टि से
जल्द से जल्द इनका नाश करें
यही आपके दास का आपसे निवेदन है।
अगर “पारस” के संपर्क में आने के बाद भी
लोहे के स्वाभाविक दोष
दोस्त बदलते नहीं हैं, तो हे गुरुराया
तो ये “पारस” का ही अपमान है।
आप मुझे पापी मत रहने दीजिए
आप अपने को छोटा मत कीजिए
देखिए आप “पारस” हैं और मैं लोहा
मेरी मुक्ति की आपको भी चिंता है
एक बच्चा हमेशा गलतियां करता है
लेकिन एक माह उसे गाली नहीं देती
ऐसा सोचकर (याद करके)
आप मुझ पर कृपा करिए।
हे सतगुरु साईनाथ
आप मेरे कल्पतरु हैं
आप निसंदेह ही इस सांसारिक सागर
को पार करने का माध्यम है।
आप ही “कामधेनु” हैं!
आप ही “चिंतामणि” हैं!
आप ही ज्ञान के आकाश में सूर्य हैं
आप गुणों की खान हैं!
हे, साईंनाथ आप तो स्वर्ग की सीढ़ी हैं!
हे, पवित्र, शुद्धतम,
हे, पवित्र और परमानंद के अवतार
हे, परमात्मा
हे, अद्वैत, ज्ञान के सागर
है, परम ज्ञान के अवतार, सभी मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ
हे, भक्तों के शरणार्थी (शरण देने वाले)
कृपा करिए, मुझ पर कृपा (आशीर्वाद) करिए!
आप सदगुरु मछंदर हैं
आप महात्मा जालंधर हैं।
आप निवृत्तिनाथ, संत ज्ञानेश्वर हैं
कबीर, शेख मोहम्मद, एकनाथ भी आप हैं
आप बोधला, आप सावता माली हैं,
आप संत तुकाराम हैं, साईनाथ
आप संत सुख, आप मणिक प्रभु हैं
आपका वर्तमान स्वरूप
और आपकी विविध प्रकृति (स्वभाव)
दोनों ही समझने में बहुत कठिन है!
आप अपनी जाति और धर्म की जानकारी
इसी को प्रकट (प्रत्यक्ष) नहीं करते।
कोई आपको मुसलमान (यवन) कहता है
कोई आपको ब्राह्मण कहता है
इसलिए भगवान कृष्ण की तरह
आप भी रहस्यमय हैं।
भगवान श्री कृष्ण को देखकर
अलग-अलग लोग उन्हें विभिन्न नामों से बुलाते थे
कोई उन्हें यदुभूषण
कोई उन्हें गोपाल कहते
मां यशोदा उन्हें लाडला कहती
कसं उन्हें बहुत बुरा कहते हैं
उद्धव उन्हे प्रिय कहते हैं,
अर्जुन उन्हें सर्वज्ञ (जो सब जानते हैं) कहते हैं।
इसी तरह, हे, गुरुराया,
हर मनुष्य अपनी मनोदृष्टि (मनोभाव)
के आधार पर, आपको
अलग-अलग नाम देते हैं।
यह मस्जिद आपका निवास स्थान होना
और आपके कानों का न छिदा होना
सबका आपको रहमान कहना
इसलिए आपको मुसलमान कहना तार्किक है।
उसी तरह, अग्नि का पूजन
आपके द्वारा होना, दया के स्वामी
मेरे यह निष्कर्ष (निर्णय) हैं
कि आप एक हिंदू हैं।
लेकिन यह ऊपरी अंतर
सिर्फ ज्ञानियों को प्रभावित करता है
लेकिन जो ज्ञान के इच्छुक हैं
वह प्रभावित नहीं होते।
आप स्वयं ब्रह्मा हैं!
जाति और धर्म का आप से कोई संबंध नहीं है
आप सर्वोच्च गुरु हैं
आप सृष्टि के रचयिता (विधाता) हैं!
हिंदू मुसलमान के बीच
एकता और मेल-जोल लाने के लिए ही
आप मस्जिद में अग्नि पूजा करते
और अपने भक्तों को अपनी लीला दिखाते थे।
आप धर्म और जाति से परे हैं
आप ही ब्रह्मांड हैं, शाश्वत सत्य हैं
आप सच में वही हैं
आप मनुष्य की कल्पना से परे हैं।
आप पर अनुमानों और शंकाओं की खुली छूट ने
अनेक बाद विवादों को पनपाया
वहां पर मेरे मामूली शब्द
कैसे जीत सकते हैं?
लेकिन जब मैं आपको ध्यान से देखता हूं
तब मैं शांत (मौन) नहीं रह पाता
क्योंकि गुणगान करने वाले के लिए
शब्द ही एक माध्यम है।
इसलिए, शब्दों के द्वारा ही
जितना भी गान (वर्णन) संभव है
वह आपकी कृपा से
मैं हमेशा ही करता रहूंगा।
मैं समझती हूं कि संत महान
और ईश्वर दिव्य अलौकिक शक्ति से युक्त हैं
सभी के साथ सामान भाव रखते हैं
और तेरा और मेरा का कोई भेद नहीं करते।
हिरण्यकश्यप और रावण मारे गए
क्योंकि वह ईश्वर से घृणा (द्वेष) करते थे
लेकिन संतों ने ऐसा नहीं किया
और घृणा नफरत का निवारण किया।
गोपीचंद ने कूड़े के ढेर में
महात्मा जालंधर को जला दिया
लेकिन उन्होंने उससे द्वेष नहीं किया।
बल्कि राजा इस भौतिक संसार
से मुक्त हो गया
और यादगार बन गया
ऐसे शक्तिशाली और दयावान हैं संत
जिनकी महिमा अवर्णीय है।
संत सूर्य हैं
उनकी कृपा रोशनी है
संत चंद्रमा की तरह सुंदर (सुखद) हैं
वो चांदनी की तरह सौम्य (सरल) है।
संत सुखदायक कस्तूरी है
उनकी कृपा (आशीर्वाद) उसकी खुशबू की तरह है
संत सरस गन्ना है
उनकी कृपा उसकी मिठास की तरह है।
संत निश्चित ही अच्छे और बुरे
दोनों की तरफ एक समान है।
उल्टा उनको पापियों से
बहुत ज्यादा प्रेम है।
गोदावरी नदी के पानी में
सिर्फ गंदे कपड़े खोलने के लिए आते हैं
साफ कपड़े एक पेटी में
गोदावरी नदी के तट पर दूर रहते हैं।
आपके चरण कमलों के दर्शन
गोदावरी नदी में स्नान की तरह है
हे साई समर्थ मेरे पापों को धुलिए
और मुझे शुद्ध पवित्र करिए।
हम सांसारिक लोग
बार-बार दोषों को इकट्ठा करते हैं
इसलिए हम सभी लोग
आपके दर्शनों के लिए सही हैं।
गोदावरी नदी के तट पर ही
जुलाई के लिए कपड़े आते हैं
अगर उन्हें ऐसे ही छोड़ दिया जाए
तो यह गोदावरी नदी की बदनामी हैं।
आप घने पत्तों वाले ठंडे और छायादार पेड़ हैं
हम सब यात्री हैं
जो कि सूर्य की झुलसने वाली किरणों की तरह
इन जीवन की आपदाओं से परेशान हैं।
हे गुरुराया आप दयालु है
इस तपती हुई गर्मी (परेशानियों) से हमारी रक्षा करें।
आपकी सौम्य कृपा की ठंडी छाया
बहुत ही अद्भुत है।
अगर पेड़ के नीचे बैठकर भी
किसी को सूर्य की गर्मी लगे
तब फिर कौन उस पेड़ को
छाया देने वाला पेड़ कहेगा?
देखें आपकी कृपा के बिना
कुछ भी इस संसार में सही नहीं हो सकता
सही (सच) को कायम रखने के लिए
शेशायी (भगवान श्री कृष्ण) ने अर्जुन से दोस्ती की।
सुग्रीव की दयालुता से
विभीषण भगवान श्रीराम से मिले
संतों की वजह से ही
श्री हरि (भगवान विष्णु) का गुणगान होता है।
भ्रम निराकार है।
शास्त्र भी उनका वर्णन नहीं कर सकते
उसे सगुण रूप देने के लिए ही
संतों ने निराकार की उपासना को कम किया है।
वैकुंठ वासी (भगवान विष्णु का अवतार भगवान श्री कृष्ण, भगवान विट्ठल) रुक्मणी के पति हैं
ने दामाजी के लिए महर का रूप लिया
भैंसों के शव को उठाने के लिए
संत चोखामेला ने जगत आत्मा से कार्य कराया है।
संतो की महिमा जानकर
जगजीवन जी ने पानी उठाने का काम किया
संत ईश्वर से अधिक दयालु है
जो कि शाश्वत सत्य, ज्ञान और आनंद के स्वामी हैं।
इससे ज्यादा बोलने की आवश्यकता ही नहीं है।
आप ही हमारी माता और हमारे पिता हैं
हे, सतगुरु साईंनाथ
शिर्डी के निवासी।
साईं बाबा, आप की लीलाओं को
कोई नहीं समझ सकता
तो फिर मेरी साधारण से वाणी
कैसे न्याय कर सकती है?
पापियों को बचाने के लिए ही
आप शिर्डी आए
मिट्टी के दीयों में पानी डालकर
आपने उन्हें जलाया।
छोटे से अजीब माप के लकड़ी के पटरे को
आपने अपना बिस्तर बनाया लिया
इस प्रकार, आपने अपने भक्तों को
आप की योगिक शक्तियां दिखाइए।
बहुत सी स्त्रियों के बाँझपन को
आपने पूरी तरह से खत्म कर दिया
बहुत से लोगों की बीमारियों को
आपने उदी से ठीक किया।
आपके लिए सांसारिक परेशानियों को दूर करना
असंभव नहीं है।
क्या चींटी का भार
एक हाथी बोझ समझता है?
हे गुरुराया
सभी दीनों पर दया करिए।
मैं आपके चरण कमलों में आत्मसमर्पण करता हूं
कृपया मुझे खुद से दूर मत करिए।
आप राजाओं के राजा हैं
आप स्वयं कुबेर से भी धनवान हैं
आप परम कल्याणकारी हैं
आप से बड़ा कोई नहीं है।
दूसरे सभी देवी देवताओं की पूजा के लिए
एक विधि निर्धारित रहती है
लेकिन आपकी पूजा के लिए
आपसे योग्य कुछ भी नहीं।
देखिए सूर्य के क्षेत्र में
दीपावली का त्योहार आ गया है
लेकिन उसे मनाने के लिए
क्या साधन होने चाहिए?
सागर की प्यास बुझाने के लिए
इस धरती पर उतना पानी नहीं है
आज को गर्माहट देने के लिए
कहाँ से ऊष्मा को लाया जाए?
आपकी पूजा की हर सामग्री में
आपका ही तत्व है
हे श्री समर्थ गुरुराया,
शुरुआत से ही वो आप का हिस्सा रही है।
मेरी हर बात दार्शनिक रही है
क्योंकि मैंने स्वयं सत्य का अनुभव नहीं किया है
बिना अनुभव के और बिना अर्थ जाने
मैंने शब्दों को बोला है।
अगर विधि विधान से मुझे
आपकी पूजा करनी है तो,
है श्री समर्थ,
उसको करने के लिए मेरे पास कोई साधन नहीं है।
सिर्फ अपनी सोच (कल्पना) के आधार पर ही
मैं आपकी पूजा करूंगा
हे दयावान आप इस दस की
उस पूजा को स्वीकार करें।
अब मैं अपने आंसुओं से
आपके चरण कमलों को धोता हूँ
सच्ची भक्ति के चंदन का लेप
आपको लगाता हूं।
इन सजावटी शब्दों का लंबा अंगरखा (कफ़नी)
आपको देता हूं।
श्रद्धा और प्रेम की माला को
आपके गले में पहनाऊँ।
पापों और दुष्टता की धूप (बत्ती) को
आपके सामने जलाऊँ
यद्यपि मैं जानता हूं कि वह अशुद्ध है
फिर भी आपके सामने कोई दुर्गंध नहीं आएगी।
सद्गुरु के बजाय अगर किसी और
अगर यह ग्रुप जलाई जाए
तब उस दुख के साथ
ये होगा।
जैसे ही धूप को आग से जला जाएगा
धूप की खुशबू तुरंत ही
निकल जाती है।
लेकिन, आपके सामने ऐसा नहीं हैं
आपके सामने दोष जल (खत्म) जाते हैं
और सिर्फ अच्छाई रह जाती है
ताकि यह दुनिया देख सके।
एक बात मन का महल जल जाए
तब मन शुद्ध (साफ) हो जाता है
जैसे गंगा नदी जो पावन होती है
वो सारी अशुद्धि को धो देती है।
लोग और मोह को
मैं जलाऊं (दीप के रूप में)
जिससे हे गुरुराया आप मुझे
ज्ञान, ताप, वैराग्य का प्रकाश दे सकें।
पूर्ण श्रद्धा का सिंहासन
मैं आपको बैठाने के लिए देता हूं
आपको प्राप्त करने पर
आप मेरी भक्ति का प्रसाद (नैवेद्य) स्वीकार करें।
आप मेरी प्रार्थना (भक्ति भाव) को स्वीकार करें
और मुझे उसका सत्व दें
क्योंकि मैं आपकी संतान हूं
और मेरा आपके दुग्ध पर पूरा अधिकार है।
मेरा मन दक्षिणा है
जिसे मैं आपको देता हूं
इसलिए, अब किसी भी कर्म का पाप और पुण्य
मेरा नहीं होगा।
अब पूरी विनम्रता, श्रद्धा और भक्ति के साथ
मैं आप को शत-शत नमन (प्रणाम) करता हूं
के दयावान साईनाथ
कृपया इसे स्वीकार करें।
प्रार्थनाष्टक
जो शांत मन वाले हैं, उनकी जय हो
साईं नाथ जो दयावान हैं, उनकी जय हो
जो करुणा के सागर और सत्य के अवतार हैं, उनकी जय हो
जो अज्ञानता को दूर करने वाले हैं, उन की जय हो
आप धर्म और जाति के परे हैं
जो समझ से परे और पाप ताप हरने वाले हैं
शिव, रक्षा करिए, मेरी रक्षा करिए
शिर्डी के साईं बाबा।
आप दिव्य ज्ञान के सूर्य हैं, आपकी जय हो
आप इच्छापूर्ति वाले और कल्याण में हैं, आपकी जय हो
भक्तों के मन को जानने वाले राजा हैं, आपकी जय हो
आप आत्म समर्पित लोगों के रक्षक हैं, आपकी जय हो।
आप सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा हैं, आपकी जय हो
आप संसार को बनाए रखने वाले विष्णु हैं, आपकी जय हो
आप जगत का नाश करने वाले शिव हैं, आपकी जय हो
आप शक्तिशाली रुद्र हैं, आपकी जय हो।
इस संसार में कोई जगह नहीं जहां आप नहीं हैं
आप सारे लोगों में विद्यमान हैं
आप सभी लोगों के हृदय में वास करते हैं
हे साईंनाथ आप कण कण में समाए समाए हुए हैं।
हमारे सभी पापों के लिए हमें माफ करिए
मैं आपसे ये प्रार्थना करता हूं
और हमारे भ्रम और संशयों को भी
आप दूर करिए।
आप कामधेनु हैं और मैं बछड़ा
आप चंद्रमा हैं और मैं उसकी रोशनी से गला हुआ पत्थर
आप अपने बच्चों से प्रेम करने वाले हैं, आपकी जय हो।
हे प्रभु, आप अपना हाथ मेरे सर पर रख कर आशीर्वाद दें
और मेरी चिंताओं (दुख) और रोगों को दूर करें
हे प्रभु आप दासगाणु को अपना लीजिए
और अपने हृदय से लगा लीजिए।
इस स्तुति के द्वारा मैं आपसे प्रार्थना करता हूं
कि हमेशा आपकी दया मुझ पर बनाए रखिए
मेरे पापों, दुखो, कष्टों और दरिद्रता को दूर करिए
और मेरे नेत्रों में हमेशा आपका ही स्वरूप बना रहे।
आप गाय हैं और मैं बछड़ा
आप माता हैं और मैं आपका बच्चा
मेरे प्रति आप कठोर न बने
बल्कि मुझे प्यार करें।
आप मलयगिरी का चंदन हैं
और मैं कांटेदार झाड़ी हूं
आप जीवन देने वाले गोदावरी नदी के जल हैं
और मैं सबसे बड़ा पापी हूं।
अगर आपके दर्शन के बाद भी मेरे दोष दूर न हों
तो है गुरुराया कौन आपको चंदन कहेगा
सद्गुरु आपकी श्रेष्टता तभी है
जब आप मेरे दोषों को दूर करें।
कस्तूरी के केवल निकट होने से ही
धूल भी मूल्यवान बन जाती है
फूल अपनी सुगंध उस धागे को
जिनसे वो बंधे हैं, उसे भी दे देते हैं।
यही महान संतों का तरीका है
जिस-जिस के भी संपर्क में वो आते हैं
उनको वो अच्छाई प्रदान करते हैं
फिर इस संसार में उसका मूल्य बढ़ जाता है।
पवित्र भस्म, बाघ की खाल और नंदी (बैल)
भगवान शिव का प्रतीकात्मक किस्सा है
इसलिए इन सभी की
प्रशंसा हर जगह होती है।
ग्वालों के मनोरंजन के लिए ही
वृंदावन में यमुना नदी के तट पर
भगवान कृष्ण ने दही-काला का खेल खेला
जिसने ज्ञानियों के बीच मान्यता प्राप्त की है।
आप दयावान और करुणामय हैं
मेरे प्रिय हैं और आपका हृदय प्रेम से भरा है।
मैं पापी हूं, मुझे माफ करिए
और मुझ पर दया (कृपा) करिए।
जिन भी भौतिक और सांसारिक पदार्थों
से मेरा कल्याण होगा
हे गुरुराया आप मुझे वही देंगे
इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है।
हे प्रभु, मैं खारा जल हूँ
और आप सागर में मिठास हैं
लेकिन अगर आप मुझ पर कृपा करेंगे
तो मुझ में भी मिठास आ जाएगी।
हे प्रभु आप मैं अपार शक्ति है कि
आप सागर में मिठास भर सकते हैं
आप मालिक हैं और मैं सेवक हूँ
इसलिए इस दसगाणु की प्रार्थना को स्वीकार करें।
आप सभी गुरुओं में सर्वश्रेष्ठ हैं
और आपकी प्रसिद्धि सब जगह फैली है
मात्र मेरे जो भी दोष हैं
उन सबको आप ही दूर करें।
अब मैं इससे ज्यादा और क्या बोलूं
हे गुरु समर्थ आप ही मेरे रक्षक हैं
जो बच्चा अपनी मां के हाथ में होता है
क्या वो कभी भी डरता है?
जो यह स्तुति हर रोज
प्रेम और श्रद्धा से पढ़ेगा
साईनाथ उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूरी करेंगे
और उसे सुख और शांति देंगे।
यह स्तुति दिव्य कवच के समान हमेशा
रक्षा करने वाला और वरदान देने वाला है
जो भी इस स्तुति को अच्छे से पढ़ेगा
एक साल के अंदर ही उसकी सभी परेशानियां दूर हो जाएंगी।
स्नान से पवित्र होने के पश्चात
हर रोज इस स्तुति का
प्रेम और श्रद्धा से पाठ करने से
प्रभु हमारे मन को भी शुद्ध कर देंगे।
गुरुवार का दिन गुरु का होता है
और उस दिन सद्गुरु को दिल से याद करना चाहिए
गुरुवार को इस स्तुति का पाठ करना
बहुत कल्याण कारक और सहायक होता है।
एकादशी का दिन बहुत ही शुभ होता है
और इस दिन इसका पाठ श्रद्धा से करना
कल्याणकारक, सुखद और
चमत्कारी होता है।
जो इसका पाठ पूरी श्रद्धा से करेगा
उसको सद्गुरु के दर्शन होंगे
और उनकी कृपा से सांसारिक और भौतिक सुखों के साथ
सुख, शांति और मोक्ष भी प्राप्त होगा।
स्तुति के पारायण से
कमजोर दिमाग वाला भी बुद्धिमान बन जाता है
इस स्तुति को पढ़ने से लंबी उम्र मिलती है
और असामयिक मृत्यु से रक्षा होती है।
इस स्तुति में प्रभु की अनुकंपा (दया) समाई है
श्रद्धा और प्रेम से इसका पाठ करने से
निर्धन को भी धन की प्राप्ति होती है
क्योंकि सच में साई ही महा कुबेर और शिव हैं।
साईं की उपस्थिति बहुत ही शुभ और सुखद है
इस स्तुति का पाठ कल्याण कारण फल देता है
निःसंतान को संतान की प्राप्ति होती है
और उसे रोगों से भी मुक्ति मिलेगी।
इस स्तुति को पढ़ने से जीवन सुंदर बनता है
शाश्वत सत्य और धर्म का ज्ञान होता है
डर, भय और सभी चिंताएं दूर होती हैं
और मान सम्मान और प्रतिष्ठा भी मिलती है।
इस स्तुति का हृदय से आदर करो
इसकी शक्ति पर अपनी पूरी श्रद्धा रखो
साफ और पवित्र मन से इसे समझो
और सारे संशयों और वहमों को दूर कर दो।
शिर्डी की तीर्थ यात्रा पर जाओ
और वहां साईं बाबा के चरण कमलों पर ध्यान लगाओ
जो की अपने भक्तों के लिए कल्प वृक्ष हैं
और दीन दुखियों के दुख को दूर करने वाले हैं।
बाबा की प्रेरणा से ही
और उनकी आज्ञा से यह स्तुति हुई है
वरना अगर बाबा का आशीर्वाद नहीं होता
तो क्या हस्ती हो पाती?
शक संवत अठारह सौ चालीस (1840) में
भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष में
सोमवार, गणेश चतुर्थी के दिन, दूसरे पहर में
साईं बाबा की यह स्तुति पूरी हुई।
महेश्वर के पवित्र स्थल पर
जो नर्मदा नदी के तट पर स्थित है
श्री अहल्या देवी की समाधि के पास
साईंनाथ की स्तवन मंजरी पूरी हुई।
मांधाता के पवित्र क्षेत्र में
यह स्तुति प्रगट (प्रकट) हुई।
श्री साईं बाबा (साईनाथ) नें मेरे मन की आवाज बनकर
मुझसे हर एक शब्द बुलवाया।
दासगाणु जो की श्री साईं बाबा का
और सभी साधु-संतों का सेवक (दास) है
अपनी इंद्रियों को वश में कर यह स्तुति लिखी
लेकिन इसे गाने वाले (लिखने वाले) पृथ्वी के प्रभु श्री साईं बाबा ही हैं।
साईं नाथ की यह विनम्र स्तुति
इस सांसारिक सागर को पार कराने में मदद करेगी
सारे संसार में साई छाए
इसलिए, यह सेवक (दास) आपके (पांडुरंगा) के गुण गत है
श्री हरि हर को यह अर्पित है।
सब कुछ शुभ हो।
पुंडलिक वर्धा विट्ठल।
सीताकांत को याद करके।
जय जय राम।
पार्वती पते हर हर महादेव।
श्री सद्गुरु साईनाथ महाराज की जय ।।
श्री सद्गुरु साईनाथ को यह अर्पित है ।।
जय साईं राम!!!
ॐ साईं राम!
।। श्री सच्चिदानंद सद्गुरु साईनाथ महाराज की जय ।।
।। ॐ राजाधिराज योगिराज परब्रह्म साईनाथ महाराज ।।
।। श्री सच्चिदानंद सद्गुरु साईनाथ महाराज की जय ।।
जय साई राम !!
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