शिर्डी के साई बाबा के गुरु – श्री गोपालराव केशवराज बाबासाहेब (भाग 1)

शिर्डी के साई बाबा के गुरु – श्री गोपालराव केशवराज बाबासाहेब (भाग 1)

शिर्डी के साई बाबा के गुरु – श्री गोपालराव केशवराज बाबासाहेब (भाग 1)

दासगणू  महाराज, जो बाबा के करीबी और अन्नय भक्त थे उन्होंने उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक “भक्तलीलामूर्त” और “संतकथामूर्त” में ये प्रमाणित करना चाहा कि श्री गोपालराव केशवराज बाबासाहेब साई बाब के गुरु थे, पर प्रमाण न होने के कारण किसी ने उनकी बातो पर विश्वास नहीं किया। केवल दासगणू महाराज ही ऐसी कड़ी हैं जो साई बाबा और उनके गुरु दोनों को जोड़ती है। “संतकथामूर्त” के (अध्याय 57) में बाबा के बारे मे लिखा गया है और यह पुस्तक सन्न 1908 में परभानी गावँ में मुघलो के  शाशनकाल में प्रकाशित हुई थी।दासगणू महाराज और बाबा के बीच घेरा प्रेम था और बाबा हमेशा उन पर पुलिस की नौकरी छोड़ने के लिए दबाव डालते थे।  इसी कारन उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। फिर बाबा ने उन्हें संतो की जीवनी लिखने के लिए प्रेरित किया। दासगणू जी  के  द्वारा लिखी गई पुस्तकें भक्तलीलामूर्ति और संतकथामूरत बाबा के प्रोत्साहन का ही परिणाम है।

साई बाबा के गुरु

श्री गोपालराव केशवराज बाबासाहेब का जन्म जाम्ब नामक गाँव में हुआ था। उनके जन्म से पहले उनके पिता केशवराज जी ने संतान ना होने के कारण भगवन वेंकटेश को प्रसन्न करने के किए एक अनुष्ठान किया था। भगवान् ने उनकी प्राथर्ना सुन ली और कहा कि काशी के रामानंद स्वामी उनके पुत्र के  रूप में पुनर जन्म लेंगे और भविष्य में गोपालराव बाबासाहेब के नाम से विख्यात होंगे।

शादी के बाद गोपालराव जी ने तपस्या करने के लिए अपना घर त्याग दिया। वो यहाँ वहाँ घूमते हुए सन्न 1830 मे सेलु नाम के गावँ (जिला परभानि) पहुंचे । उस समय वहां सिर्फ घास से बने दो चार ही घर थे, इसिलए गोपाल जी के लिए वहां पर्याप्त जगह नहीं थी, फिर भी उन्होंने मन बना लिया कि वो उनके लिए सही जगह है और वो वही रहेंगे।

तुरंत ही उन्होंने अपना काम शुरू कर दिया। वहां पर एक पुराना किला था जिसकी उन्होंने मरम्मत की। उनकी कड़ी महनत और सत्कर्मो के कारण सेलुवाड़ी “सेलु” में परिवर्तित हो गया। वो वहां के जमींदार भी बन गए। उनके शांत और कोमल स्वाभाव के कारण लोग उन्हें काफी पसंद करते थे और उन्होंने गोपालराव जी को केहीं और जाने नहीं दिया।

एक दिन अजीब एक घटना घटी। जिस जगह की गोपालराव जी ने मरम्मत की थी उसके पीछे की तरफ एक अनजान स्त्री थोड़ा आराम करने के लिए आई। वह काफी जवान और खूबसूरत थी। तब सूरज ढलने का समय था। उसी समय गोपालराव जी किले की छत पर थोड़ा टहलने के लिए आए और उनकी दृष्टि उस स्त्री पर पड़ी, उस स्त्री को देखते ही वह अपनी सूद खो बैठे और चिंता और आश्चर्य के साथ उसकी सुंदरता का आनंद लेने लगे। वो इतना खो गए की उन्हें सिर्फ वो स्त्री ही नज़र आ रही थी और वो थोड़े कामुक हो गए।

तुरंत ही उन्होंने अपने आप को संभाला। वो पसीने से भीग गए और ठंडी हवा आने के कारण होश में आए। अब वो पछता कर सोचने लगे की “मैं कितना बड़ा पापी हूँ, एक  पराइ स्त्री को देखकर मैं अपने होश कैसे खो सकता हूँ?” तुरंत ही उन्हने अपने आप को सज़ा देने की सोचा। वैसे ही वह पूजाघर में गए और वहां एक बड़ी सुई रखी हुई थी।उन्होंने स्वयं से कहा कि “मुझे इन पापी नेत्रों की आवश्यकता नही है” और अपने नेत्रों को घायल कर दिया। तब जाकर उनके अशांत मन को शांति मिली। गोपालराव जी की आंखें घायल होने की खबर हवा की तरह पूरे गावँ में फैल गई। सभी लोग उन्हें देखने के लिए आने लगे और कुछ लोग सोचने लगी की इनकी मानसिक स्तिथि ख़राब को गई है, नहीं तो कौन ऐसे स्वंम को कष्ट देता है।  इस घटना के कारण कुछ लोग उन्हें ज़्यादा आदर करने लगे, और कुछ तो उन्हें महाराज के प्रतीक समझने लगे। दूर-दूर से लोग उनके दर्शन के लिए आने लगे।

एक दिन गोपालराव महाराज जी के दर्शन के लिए एक अंधी महिला आई, वो महिला उनके चरणों में गिर कर उसकी दृष्टि को लौटने के लिए प्रार्थ्रना करने लगी। वह कहने लगी कि “आप तो दया के सागर हैं, कृप्या मेरी आँखों की रौशनी लौटा दीजिये”। उस स्त्री की निष्ठा और आत्मविश्वास देखकर गोपालराव जी को दया आ गई। वहीं  पर दूसरी स्त्री लाल मिर्च पीस रही थी। गोपालराव जी ने हाथ भर कर पीसी हुई लाल मिर्च ली और उस स्त्री नेत्रहीन स्त्री के आँखों में डाल दी। परिणाम स्वरुप उसे उसकी आँखों की रौशनी वापिस मिल गई। इस घटना के बाद गोपालराव जी की ख्याती चारो और फैल गई।

साई बाबा के जन्म की सुचना

कुछ दिनों बाद माहाराज गोपालराव जी ने काशी जाने का विचार किया। उनके साथ दूसरे काफी लोग भी गए। महाराज प्रयाग से कुरुक्षेत्र, वृन्दावन, गोकुल, द्वारका, सोमनाथ, प्रभासपत्तन, जूनागढ़ और अहम्बदाबाद गए। जब वह अहम्बदाबाद मे सुहागशाह के मज़्जिद में उनके दर्शन के लिए गाए, वहां एक विचत्र सी घटना घटी। जैसे ही महाराज ने मज़्जिद में पे पैर रखे वैसे ही एक आवाज़ आई, “सलाम वालेकुम.” पिछले जन्म के माहान रामानंद। भले ही आप सेलु में थे फिर भी मैंने आपको ढूंढ लिया। आपका कबीर नाम के शिष्य का जन्म पठारी गावँ में होगा, जो की सेलु से 10 मील की दुरी पर है”। इतना ही कह कर आवाज़ बंद हो गई। सारे लोग जो भी गोपालराव महाराज के साथ थे हैरान हो गए, पर गोपालराव जी को तो ये सब पहले से ही पता था।आगामी पोस्ट: शिर्डी के साई बाबा के गुरु – श्री गोपालराव केशवराज बाबासाहेब (भाग 2)

सूत्र: गुजराती मैगज़ीन “द्वारकामाई” से अनुद्वदित

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