साधारण व्यक्ति से ट्रांसलेटर बनने का अनुभव

साधारण व्यक्ति से ट्रांसलेटर बनने का अनुभव – Sai Baba Story

साधारण व्यक्ति से ट्रांसलेटर बनने का अनुभव

ॐ साई राम

जैसे हमें पता है कि बाबा हमेशा अच्छे विचारों को प्रोत्साहित करते हैं, मेरे साथ भी वैसा ही हुआ। पिछले कुछ महीनो में जो भी हुआ वो सब मेरे लिए चमत्कार से काम नहीं था। मैंने ये कभी नहीं सोचा था कि बाबा मुझे इतना बड़ा सरप्राइज़ देने वाले हैं और अपने दरबार में मेरे लिए उन्होंने एक ज़िम्मेदारी वाला स्थान रखा है।

पिछले 6 महीनो से (जून या जुलाई 2017) से मुझे कुछ ऐसा महसूस हो रहा था या फिर समझ लीजिये एक जूनून सा था कि मुझे बाबा के लिए कुछ करना है और किसी भी माध्यम से उनकी सेवा करनी है। उन्होंने मुझे वो सब कुछ दिया जो मेरे लिए बेस्ट है और हमेशा मेरे अच्छी और बुरी दोनों परिस्तिथियों में मेरे साथ थे, जबकि एक बार मैंने उनकी पूजा करना भी छोड़ दिया था। फिर भी उन्होंने मेरा साथ नहीं छोड़ा।

करीब अक्टूबर 2017 के आखिर में मुझे “भक्तो के अनुभव (Devotees Experience) ब्लॉग” के द्वारा महापारायण के बारे में पता चला, मैंने तुरंत ही उसके लिए अपना नाम दिया, फिर मुझे पता चला कि महापारायण पहले से ही शुरू हो चूका है। यह जानकर मुझे बड़ी निराशा हुई और मुझे इसीलिए यह सोचकर भी बुरा लग रहा था कि मैं अब इसका हिस्सा नहीं बन पाऊँगी। पर मैंने सब साई बाबा पर छोड़ दिया और उनसे कहा “कोई बात नहीं, यदि महापारायण शुरू भी हो चुका है में फिर भी प्रतीक्षा करुँगी, और देखती हूँ कि आप मुझे सेवा का मौका कब देते हो।”

अभी फिलहाल मैं मस्कट (ओमान) में हूँ, यहाँ पर डॉयरेक्ट अन्तर्रष्ट्रीय व्हाट्सएप (whatsapp) कॉल करना संभव नही है इसीलिए मैंने 26 दिसंबर 2017 में व्हाट्सएप (whatsapp) कॉलिंग के लिए vpn डाउनलोड किया और ठीक उसके अगले ही दिन मुझे कनिका जी का फ़ोन आया ये पूछने के लिए कि मैं महापारायण का भाग बनना चाहती हूँ की नहीं। यह सुनकर मैं बहुत खुश हई और बाबा को धन्यवाद किया कि आखिरकार मुझे फ़ोन आया। अब मैं ये सोचती हूँ कि ये सब बाबा की ही लीला थी मुझे इस महान कार्य का हिस्सा बनाने के लिए।

महापारायण में हमें अपने रोल नंबर के अनुसार साई सत्चरित्र का अध्याय पड़ना होता है। मुझे उसमे रोल नंबर 7 मिला, मैं उससे दुखी तो नहीं हुई पर यह सोच रही थी कि जिन लोगो लो रोल नंबर 9 या 18 है वो कितने भाग्यवान हैं क्यूंकि 9 को हम बाबा का अंक मानते हैं। महापारायण के बाद मुझे अखंड महाजाप के बारे में पता चला, हलाकि मैं निश्चित नहीं कर पा रही थी कि मैं नामजप में भाग लूँ या नहीं क्यूंकि ये एक जीवनभर की प्रतिज्ञा (कमिटमेंट) के सामान है, पर बाबा ने मुझे ये भी करने के लिए प्रेरित किया। इस ग्रुप में भी रोल नंबर थे और मैं अपने नंबर को देख कर हैरान हो गई जो कि 54 था, जिसका कुल होता है 9। जिस प्रकार साई सत्चरित्र में बाबा ने लक्ष्मी बाई जी को पहले 5 सिक्के दिए और फिर 4 सिक्के दिए थे, जो की कुल 9 सिक्के थे और जो नवधा भक्ति को दर्शाता है, मुझे भी कुछ वैसा ही आनंद महसूस हो रहा था अपने रोल नंबर को देख कर।

अभी भी मेरे लिए काफि सारे सरप्राइज़ बाकि थे। नामजप ग्रुप से जुड़ने के बाद मैं यह भी सोच रही थी कि इसमें जो भी मॉनीटरज़ बने हैं वो कितने भाग्यशाली हैं क्यूंकि वो किसी न किसी तरह से बाबा की सेवा ही कर रहे हैं। इसके अगले हफ्ते ही मुझे भी मॉनिटर बनने का मौका मिला और वो भी बिलकुल मेरे उपयुक्त समय पर, इस प्रकार बाबा ने मेरी यह इच्छा भी पूरी कर दी, सच में अद्द्भुत है बाबा की लीला।

नामजप ग्रुप में जुड़ने के बाद पूजा पिल्लै जी ने ऐसे ही मुझे भक्तो ने अनुभव (Devotees’ Experience) ग्रुप से जुड़ने के लिए कहा और मैं भी सहर्ष इसके लिए मान गई। इस ग्रुप से जुड़ने के बाद बाबा में मेरी भक्ति और दृढ़ हो गयी इसीलिए मैंने पूजा जी को एक मेसेज से धन्यवाद् भी किया। इसके अगले दिन पूजा जी ने मुझसे पूछा कि क्या मैं भक्तो के अनुभवों को हिंदी में अनुवाद (ट्रांसलेट) कर सकती हूँ, यह सुनकर मैं बहुत हैरान हुई और खुश भी हुई। पर मैं कुछ तय नहीं कर पा रही थी क्यूंकि मैंने कभी ऐसा कुछ किया नहीं था। (और मैं यह सोचकर हैरान थी कि ग्रुप में 50 से भी ज्यादा भक्तो में से पूजा जी ने सिर्फ मुझे ही कैसे पूछा)। मैंने पूजा जी से कहा कि मैं अनुवाद (ट्रांसलेट) करने का प्रयत्न करती हूँ और मैंने उन्हें ये भी बताया की कुछ दिनों पहले मुझे ये विचार आया था कि जो भक्त पढ़ नहीं सकते उनके लिए हमें अनुभवों की वौइस् रिकॉर्डिंग (voice recording) भी करनी चाहिए। मुझे ये जानकर और भी आश्चर्य हुआ कि वो लोग भी यही सोच रहे थे।

हालाँकि मुझे नहीं पता थी कि कैसे करना है और क्या करना है, मैंने सबकुछ बाबा पर छोड़ दिया और बस अनुवाद (ट्रांसलेट) करने की कोशिश करी (बाबा के प्रति प्रेम के लिए) और पूजा जी को 2 मार्च को, जो की होली का दिन और गुरुवार भी था, उस दिन भेजा। उन्होंने इसे हेतल जी के पास भेज दिया और दोनों को यह पसंद आया। बाद में उन्होंने मुझे वोईस रिकॉर्डिंग करने के लिए भी कहा, तब मैंने उन्हें वो भी भेजा, उन्हें रिकॉर्डिंग भी पसंद आई और फिर हमने आगे की प्रक्रिया शुरू कर दी।

मैं हमेशा से सोचती थी और शायद दूसरे भी ये सोचते थे कि मैं किसी भी बड़ी ज़िम्मेदारी उठाने में सक्षम नहीं हूँ जिस कारण मेरा आत्मविश्स्वास भी काम हो चूका था। मैं इसीलिए बाबा के सामने उदास होकर कहती थी कि कोई भी मुझे गंभीरता से क्यों नहीं लेता और क्यों कोई भी मेरी बात नही सुनता। पर ये निश्चित करने वाले हम कौन होते हैं, ये तो हमारे गुरु को ही पता है कि कौन किसके लायक है। जिस दिन रिकॉर्डिंग और अनुवाद (ट्रांसलेशन) के काम के लिए मुझे चुना गया उस दिन मेरे अंदर से आवाज़ आई या फिर कह लीजिए मेरे कानो में ये शब्द गूंजे कि “तुम कह रही थी ना कि कोई तुम्हारी बात नहीं सुनता, अब सब तुम्हारी बात सुनेंगे।” उस भावना को महसूस करने के बाद मेरी आँखों में आंसू आ गए और मैंने बाबा को उनके इस असीम प्रेम और आशीर्वाद के लिए धन्यवाद किया और मुझे अपने जीवन का ध्येय (यानि मोटो) पता चला, जो की साई बाबा की सेवा करना है।

सबसे पहले मैं हेतल जी को धन्यवाद करना चाहूंगी कि उन्होंने मुझ पर विश्वास किया और मुझे इस आध्यात्मिक और महान ब्लॉग का हिस्सा बनने दिया। मैं पूजा पिल्लै जी की भी हमेशा आभारी रहूंगी, वो मेरे जीवन में एक फ़रिश्ते की तरह आईं। हालाँकि मुझे पता है कि बाबा ने ही ये सब करवाया है, पर पूजा जी एक माध्यम थी जिनके कारण मुझे इस महान कार्य में शामिल होने का सौभाग्य मिला जिसके मैं बिलकुल भी लायक नहीं हूँ। और मैं अपने साई बाबा को भी कोटि कोटी प्रणाम करती हूँ कि उन्होंने मुझे उनकी सेवा का मौका दिया और इतना असीम प्रेम देकर अपने भक्त के रूप में मुझे स्वीकार किया।

ये कैसा चमत्कार तुमने किया,
एक कंकर को मोती बना दिया।

जय जय साई नाथ

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